मप्र के सांसद विकास के लिए फिक्रमंद नहीं
-दो तिहाई से ज्यादा सांसद नहीं दिखा रहे पीएम मोदी के ड्रीम प्रोजेक्ट में दिलचस्पी
-चौथे चरण में मप्र के 40 सांसदों में से केवल 7 ने गोद लिए गांव
-अब तक सिर्फ 1,753 ग्राम पंचायत ही आदर्श ग्राम के लिए चयनित हुए
-वर्तमान में 790 सांसदों में से केवल 252 ने ही गांवों को लिया है गोद
भोपाल (ईएमएस)। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने पीएम बनने के कुछ महीनों के भीतर ही सांसद आदर्श ग्राम योजना का ऐलान किया था। इसके तहत करीब 2500 गांवों की कायापलट करने का लक्ष्य रखा गया था। योजना के तहत 2014 से 2019 के बीच चरणबद्ध तरीके से सांसदों को तीन गांव गोद लेने थे और 2019 से 2024 के बीच पांच गांव गोद लेने की बात कही गई है। लेकिन अपने क्षेत्र में विकास के बड़े-बड़े वादे करने वाले सांसदों ने इसमें कोई विशेष रूचि नहीं दिखाई। इसका परिणाम यह हुआ है कि चौथे चरण में ही योजना फुस्स होने लगी है। इस बार अभी तक दो तिहाई से ज्यादा सांसद पीएम मोदी के ड्रीम प्रोजेक्ट में दिलचस्पी नहीं दिखा पाए हैं। इसका खुलासा केंद्रीय ग्रामीण विकास मंत्रालय द्वारा जारी आंकड़ों से हुआ है।
सांसद आदर्श ग्राम योजना का शुभारंभ 11 अक्तूबर 2014 को किया गया था। इसका उद्देश्य एक आदर्श भारतीय गांव के बारे में महात्मा गांधी की व्यापक कल्पना को वर्तमान परिप्रेक्ष्य में ध्यान में रखते हुए एक यथार्थ रूप देना था। योजना के अंतर्गत, प्रत्येक सांसद एक ग्राम पंचायत को गोद लेता है और सामाजिक विकास को महत्व देते हुए इसकी समग्र प्रगति की राह दिखाता है जो इंफ्रास्ट्रक्चर के बराबर हो। सांसद आदर्श ग्राम योजना के लिए अलग से कोई आवंटन नहीं किया जाता है और सांसदों को सांसद निधि के कोष से ही इसका विकास करना होता है। शायद यही वहज है कि सांसद गांवों के विकास में रूचि नहीं ले रहे हैं।
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